चलो उगा दें चाँद प्रीत का
चलो झटक दें हर उस दुःख को
जो तुमसे मिलने में बाधक,
चाहो तो तुम्हें अर्पण कर दें
बन जाएँ अर्जुन से साधक !
चलो उगा दें चाँद प्रीत का
तुमसे ही जो करे प्रतिस्पर्धा
चाहो तो अंजुरी भर भर दें
भीतर उमग रही जो श्रद्धा !
चलो गिरा दें सभी आवरण
गोपी से हो जाएँ खाली
उर के भेद सब ही खोल दें
रास रचाएं संग वनमाली !
फिर उपजेगा मौन अनोखा
जिससे कम की मांग व्यर्थ है
प्रश्न सभी खो जायेंगे तब
आत्म मिलन का यही अर्थ है !
क्रांति घटेगी उगेगा सूरज
भीतर सोया जब जागेगा,
परम खींचता हर पल सबको
आत्म क्षितिज तब रंग जायेगा !
अनिता निहालानी
३० मार्च २०११
फिर उपजेगा मौन अनोखा
ReplyDeleteजिससे कम की मांग व्यर्थ है
प्रश्न सभी खो जायेंगे तब
आत्म मिलन का यही अर्थ है !
आपकी कविता की सुन्दर, भाव भरी पंक्तियों ने निःशब्द कर दिया !
आभार अनिता जी !
चलो गिरा दें सभी आवरण
ReplyDeleteगोपी से हो जाएँ खाली
उर के भेद सब ही खोल दें
रास रचाएं संग वनमाली !
bahut pyaare bhaw
फिर उपजेगा मौन अनोखा
ReplyDeleteजिससे कम की मांग व्यर्थ है
प्रश्न सभी खो जायेंगे तब
आत्म मिलन का यही अर्थ है !
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......