अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं
जो न छंद बद्ध हुए
बिल्कुल कुंआरे हैं
तिरते अभी नभ में
गीत बड़े प्यारे हैं !
जो न अभी हुए मुखर
अर्थ क्या धारे हैं
ले चलें जाने किधर
पार सिंधु उतारे हैं !
पानियों में संवरते
पी रहे गंध माटी
जी रहे ताप सहते
मौन रूप धारे हैं !
गीत गाँव की व्यथा के
भूली सी इक कथा के
गूंजते से, गुनगुनाते
अंतर संवारे हैं !
गीत जो हृदय छू लें
पल में उर पीर कहें
ले चलें अपने परों
उस लोक से पुकारें हैं !
अनिता निहालानी
२७ मार्च २०११
गीत गाँव की व्यथा के
ReplyDeleteभूली सी इक कथा के
गूंजते से, गुनगुनाते
अंतर संवारे हैं !
waah
गीत जो हृदय छू लें
ReplyDeleteपल में उर पीर कहें
ले चलें अपने परों
उस लोक से पुकारें हैं !
काव्य के माध्यम से दिल की बात कहना वाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई
अव्यक्त की तरफ इशारा करता है गीत,उसमे न जाने क्या क्या छुपा हुआ है.समयआने पर ही फूल खिलते हैं फल पकते हैं और एक नई कविता का जन्म होता है.
ReplyDeleteआदरणीय रश्मिजी, सुनील जी तथा दीदी, आप सभी का आभार ! सही कहा है पता नहीं होता किस पल में क्या कौंधेगा भीतर जो शब्दों में व्यक्त होगा...
ReplyDeletele chalen jane kidhar paar sindhu utaare hain .bahut sunder bhav..!!
ReplyDeleteadbhut rachna -badhai.
जो न अभी हुए मुखर
ReplyDeleteअर्थ क्या धारे हैं
ले चलें जाने किधर
पार सिंधु उतारे हैं !....
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें !
जो न छंद बद्ध हुए
ReplyDeleteबिल्कुल कुंआरे हैं
तिरते अभी नभ में
गीत बड़े प्यारे हैं !
अनिता जी, नए भावों की अनुगूँज गीत में बड़ी खूबसूरती से मुखरित हो रही है !
साधुवाद !
Kunwaarepan ki aisi sundarata ab tak to kaheen naheen dekhi !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर काव्य प्रस्तुति...लाजवाब।
ReplyDeleteआप सभी का आभार !
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