कैवल्य
घिरा अविद्या से मानव, उसे डराता यह तथ्य
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !
मुक्ति के विचार से डरता, मोहपाश में फिर फिर फंसता
आँख चुराता है प्रकाश से, अंधकार में जाता धंसता
है यही नग्न सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !
अहंकार को पोषित करता, गर्त में गिरता जाता
सुख की चाहत में दुःख के ही, बीज गिराता जाता
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !
सूत्र छिपे मुक्ति के, जब बंधन लगे सलोना
झूठ का पलड़ा भारी, सत्य लगे जब बौना
कहलाता परम सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !
अनिता निहालानी
८ मार्च २०११
अहंकार को पोषित करता, गर्त में गिरता जाता
ReplyDeleteसुख की चाहत में दुःख के ही, बीज गिराता जाता
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !
सत्य है !
आपकी कवितायें जीवन- दर्शन का मार्ग प्रशस्त करती हैं !
अनिता जी, बहुत बहुत आभार !
बहुत सुंदर भाव लिए छंदबद्ध रचना।
ReplyDeleteमुक्ति के विचार से डरता, मोहपाश में फिर फिर फंसता
ReplyDeleteआँख चुराता है प्रकाश से, अंधकार में जाता धंसता
है यही नग्न सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !
जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना के लिए बधाई।
bahut sunder chhand-badhh rachna.
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