Friday, April 1, 2011

पंचतत्व महादानी हैं

पंचतत्व महादानी हैं


बड़े प्यार से हर शै थामे
इक नीला सा मंडप अनंत,
आसमान की चादर ओढ़े
घूम रहे नक्षत्र निर्द्वन्द्व !

गति भरे अनिल कण-कण में
शहर बादलों के बस जाते,
महासागरों से ले अमृत
बूंद-बूंद उनमें भर जाते !

रवि धरे है जाने कब से
लपटों का इक महा बवंडर,
सृष्टि का यह चक्र चलाए
अग्नि का इक घोर समन्दर !

श्यामल धरती अंकुआती है
पोषण करती संतानों का,
युगों- युगों से धन-धान्य दे
उन्नत करती बलवानों को !

देते रहने में सुख मानें
पंचतत्व महादानी हैं
तृप्त सदा स्वयं में रहते
पंचभूत महाज्ञानी हैं !

अनिता निहालानी
१ अप्रैल २०११

10 comments:

  1. रवि धरे है जाने कब से
    लपटों का इक महा बवंडर,
    सृष्टि का यह चक्र चलाए
    अग्नि का इक घोर समन्दर !
    पंचतत्व को बताती सुन्दर कृति

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  2. श्यामल धरती अंकुआती है
    पोषण करती संतानों का,
    युगों- युगों से धन-धान्य दे
    उन्नत करती बलवानों को !
    achhi rachna

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  3. आप सभी का आभार !

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  4. thank you . it helped me in my homework !

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एहसास हो तो गहराई होती ही है ....
    , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. खूबसूरत शब्दों की माला में सजी सुन्दर प्रस्तुति। इतना उत्कृष्ट लेखन पढ़ पाना हमारा सौभाग्य है। जितनी तारीफ की जाये कम ही होगी।

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  7. very nice. Thanks I needed this for my school choir.

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  8. स्वागत व आभार चेतना जी..आप सहर्ष इसे स्कूल में पढ़ सकती हैं

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