पंचतत्व महादानी हैं
बड़े प्यार से हर शै थामे
इक नीला सा मंडप अनंत,
आसमान की चादर ओढ़े
घूम रहे नक्षत्र निर्द्वन्द्व !
गति भरे अनिल कण-कण में
शहर बादलों के बस जाते,
महासागरों से ले अमृत
बूंद-बूंद उनमें भर जाते !
रवि धरे है जाने कब से
लपटों का इक महा बवंडर,
सृष्टि का यह चक्र चलाए
अग्नि का इक घोर समन्दर !
श्यामल धरती अंकुआती है
पोषण करती संतानों का,
युगों- युगों से धन-धान्य दे
उन्नत करती बलवानों को !
देते रहने में सुख मानें
पंचतत्व महादानी हैं
तृप्त सदा स्वयं में रहते
पंचभूत महाज्ञानी हैं !
अनिता निहालानी
१ अप्रैल २०११
रवि धरे है जाने कब से
ReplyDeleteलपटों का इक महा बवंडर,
सृष्टि का यह चक्र चलाए
अग्नि का इक घोर समन्दर !
पंचतत्व को बताती सुन्दर कृति
श्यामल धरती अंकुआती है
ReplyDeleteपोषण करती संतानों का,
युगों- युगों से धन-धान्य दे
उन्नत करती बलवानों को !
achhi rachna
Saarthak rachna.
ReplyDelete-----------
क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?
आप सभी का आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन कविता!
ReplyDeleteVivek Jain vivj2000.blogspot.com
thank you . it helped me in my homework !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एहसास हो तो गहराई होती ही है ....
ReplyDelete, मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
खूबसूरत शब्दों की माला में सजी सुन्दर प्रस्तुति। इतना उत्कृष्ट लेखन पढ़ पाना हमारा सौभाग्य है। जितनी तारीफ की जाये कम ही होगी।
ReplyDeletevery nice. Thanks I needed this for my school choir.
ReplyDeleteस्वागत व आभार चेतना जी..आप सहर्ष इसे स्कूल में पढ़ सकती हैं
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