आत्मा का सूरज
हमारे दिलों की गहराई में प्रेम है
अथाह प्रेम !
प्रेम से उपजी है सृष्टि
स्थित है प्रेम में
प्रेम में ही समा जाती है !
जैसे नन्हा शिशु
प्रेम के कारण जन्मता है
संवर्धन भी होता प्रेम से
क्षरण भी संभव है तो कारण यही !
और ‘आत्मा का सूरज’ द्रष्टा है
इस चक्र का
जन्म और मृत्यु घटते हैं
आत्मा के क्षितिज पर
दिन-रात की तरह !
सूर्य सदा एक सा है
स्वयं प्रकाशित
स्वर्ण रश्मियों को निरंतर प्रवाहित करता
आत्मा के सूरज से भी
फूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !
अनिता निहालानी
२३ मार्च २०११
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आत्मा के सूरज से भी
ReplyDeleteफूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !
बहुत गहन चिंतन..आत्मा से जाग्रत प्रेम ही सच्चा प्रेम है ...बहुत प्रेरक प्रस्तुति..आभार
सूर्य सदा एक सा है
ReplyDeleteस्वयं प्रकाशित
स्वर्ण रश्मियों को निरंतर प्रवाहित करता
आत्मा के सूरज से भी
फूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !..
बहुत ही सुंदर ......आभार.
आत्मा के सूरज से भी
ReplyDeleteफूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !
bahut hi achhi rachna
आत्मा के सूरज से भी
ReplyDeleteफूटती हैं रसमय किरणें
जो भिगोती हैं दिलों को
तभी प्रेम है भीतर
अथाह प्रेम !
wakayee bhigo gayee mera bhi dil...apki kavita.