जीवन जैसे एक बुलबुला
जीवन जैसे एक बुलबुला
या फिर कोई स्वप्न सलोना
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !
ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
विद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों
जैसे कोई मृग मरीचिका
उड़ता हुआ ख्याल किसी का
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !
अनिता निहालानी
१४ मार्च २०११
सच कहा जीवन क्षणभगुर है……………बेहद उत्तम रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..जीवन दर्शन को कहती हुई
ReplyDeleteओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
ReplyDeleteविद्युत दमके पल भर को ज्यों
क्षण भंगुर जीवन शत प्रतिशत सत्य , सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई
ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
ReplyDeleteविद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों
बहुत सार्थक ...इतना सब कुछ जानते हुए भी मानव भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
ReplyDeleteविद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
bahut sundar....
ReplyDeleteआद. अनिता जी,
ReplyDeleteजीवन का अदभुत विश्लेषण ,सटीक और सत्य ! ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
विद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों
आभार!
बहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteहोली के पावन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.