जापान में सुनामी
ढाया कहर सुनामी ने फिर
भू कांपी, लहरें थर्रायीं,
ऊँची ऊँची जल दीवारें
सब कुछ सँग बहाने आयीं !
कितना बेबस और निरीह है
मानव इस कुदरत के आगे,
चला जीतने था वह इसको
लेकिन वह चाहे यह जागे !
हिला दीं पल में दृढ़ इमारतें
लपटें उठीं भयंकर नभ में,
प्राणों पर सबके बन आयी
ताश के पत्तों से घर बिखरे !
हुआ अँधेरा, फोन कटे सब
प्रियजन की बस करे प्रतीक्षा,
कुछ भी सूझ न पाए मन को
क्या खोया, क्या करे समीक्षा !
अनिता निहालानी
१६ मार्च २०११
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
ढाया कहर सुनामी ने फिर
ReplyDeleteभू कांपी, लहरें थर्रायीं,
ऊँची ऊँची जल दीवारें
सब कुछ सँग बहाने आयीं !
संवेदना से भरी मार्मिक रचना।
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
सुनामी का अच्छा चित्रण ......
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना ...सुनामी कहर बन कर आई है ..
ReplyDeleteदर्दनाक हादसा..संवेदनशील रचना.
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना ...हार्दिक संवेदनाएं वहां के लोगों के लिए.....
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