खुद से भी तो मिलना सीखो
सद् गुरु कहते ‘हँसो हँसाओ’
खुद से भी तो मिलना सीखो,
जड़ के पीछे छिपा जो चेतन
उस प्रियतम को हर सूं देखो !
चलती फिरती है यह काया
चंचल मन इत् उत् दौड़ता,
भीतर उगते पुष्प मति के
चिदाकाश में वही कौंधता !
सत्य सदा एक सा रहता
था, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !
दृष्टा बने जो बने साक्षी
निज आनंद महारस पाता,
राज एक झाँके उस दृग से
पूर्ण हुआ खुद में न समाता !
अनिता निहालानी
२५ मार्च २०११
सत्य सदा एक सा रहता
ReplyDeleteथा, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !
gahre amit bhaw
अति उत्तम विवेचना…………जिस दिन खुद को जान लिया उस दिन पूर्णाकार हो गया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ..... अर्थपूर्ण और सार्थक भाव ....
ReplyDeleteदृष्टा बने जो बने साक्षी
ReplyDeleteनिज आनंद महारस पाता,
राज एक झाँके उस दृग से
पूर्ण हुआ खुद में न समाता !....
अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
बहुत ही खूबसूरत भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteसत्य सदा एक सा रहता
ReplyDeleteथा, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !
काव्य में
एक अनोखा , अनुपम , अद्वितीय
सत्य ...
वाह !!
अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति|धन्यवाद|
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है उतने ही सुन्दर आपके विचार है जो सोचने पर मजबूर करदेते है
ReplyDeleteकभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
धन्यवाद्
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