चैतन्य
जैसे सागर
नन्हीं-नन्हीं बूंदों को समेटे है,
सूर्य अनगिन रश्मियों को समोए है,
पवन बेहिसाब गन्धों को लिये डोल रही है,
वैसे वह चैतन्य
हमें सहेजता है !
उसके सानिध्य में
हम कितने सुरक्षित हैं,
जैसे बूंद सागर में,
किरण सूरज में,
गंध पवन में !
अनिता निहालानी
२८ जनवरी २०११
वैसे वह चैतन्य
ReplyDeleteहमें सहेजता है !--कितनी आसानी से सरल शब्दों में तुमने बता दिया कि हम क्या हैं.बहुत खूब .