Tuesday, January 18, 2011

आह्लादित अंतर हो उठता


आह्लादित अंतर हो उठता

छलका करते भाव ह्रदय में
नयनों में प्रेमाश्रु झलकते
उर उपवन में जब कान्हा के
सुंदर रूप संवरते सजते !

आतुर हो जब ह्रदय पुकारे
कम्पित तन मन विगलित होता
सुमिरन में जब गोविन्द आते
आह्लादित अंतर हो उठता !

नाम-रूप में भेद न कोई
लिया नाम तो सम्मुख आते
बाहर-भीतर, भीतर-बाहर
एक वही तो झलक दिखाते !

प्रेम का सौदा सच्चा सौदा
बिना मोल ही कान्हा बिकते
अर्पित मन के कुशल-क्षेम का
हँसते-हँसते भार उठाते !  

अनिता निहालानी
१९ जनवरी २०११

4 comments:

  1. anita ji apki sabhi kavitaye sunder hai.
    apne such kaha hai parmatma ko to prem se hi
    paya ja sakta hai....

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  2. बहुत ही सुन्‍दर भावमय शब्‍द ।

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  3. आह्लादित अंतर हो उठता---जब भी तुम्हारी ये कविता पढ़ते.

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