Saturday, January 8, 2011

वह

वह

वह आया
भीतर हजार-हजार किरणें फूटीं
खिले उपवन
भर गया खालीपन !

खो गया भिक्षुक पन
किरणों की ओट में
उग आये शांति कमल !

शिशु सा निष्पाप
निष्पाप रुदन
निर्दोष हास्य
देने आया !

तोड़ बेडियाँ
मुक्त हास के घट भर-भर
भीतर-बाहर धोने आया !

अनिता निहालानी
८ जनवरी २०११  

3 comments:

  1. वह आया
    भीतर हजार-हजार किरणें फूटीं
    खिले उपवन
    भर गया खालीपन !



    बहुत सुंदर प्रस्तुति -

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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