Friday, January 7, 2011

कोई है


कोई है
सुनो ! कोई है
जो प्रतिपल तुम्हारे साथ है
तुम्हें दुलराता हुआ
सहलाता हुआ
आश्वस्त करता हुआ !

कोई है
जो छा जाना चाहता है
तुम्हारी पलकों में प्यार बनकर
तुम्हारे अधरों पर मुस्कान बनकर
तुम्हारे अंतर में
सुगंध बनकर फूटना चाहता है !

कोई है
थमो, दो पल तो रुको
उसे अपना मीत बनाओ
खिलखिलाते झरनों की हँसी बनकर
जो घुमड़ रहा है तुम्हारे भीतर
उजागर होने दो उसे !

कोई है
जो थामता है तुम्हारा हाथ
हर क्षण
वह अपने आप से भी नितांत अपना
बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के
समाया है तुम्हारे भीतर
उसे पहचानो
सुनो, कोई है !

अनिता निहालानी
७ जनवरी २०११

1 comment:

  1. वह अपने आप से भी नितांत अपना
    बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के
    समाया है तुम्हारे भीतर
    उसे पहचानो
    सुनो, कोई है !

    हृदयस्पर्शी कोमल अतिसुंदर भाव -
    बहुत बहुत शुभकामनाएं -

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