Friday, May 27, 2011

भगवदगीता का भावानुवाद


श्रीमद्भगवद्गीता
प्रथम अध्याय
(अर्जुनविषादयोग)
जब कौरव-पांडव चले युद्ध को, धृतराष्ट्र संजय से बोले
 कुरुक्षेत्र उस धर्मक्षेत्र में, क्या किया फिर उन दोनों ने

संजय ने वार्ता बढ़ाई
दिव्य दृष्टि थी उसने पायी,
दुर्योधन, द्रोण से बोला  
वीरों की संख्या गिनाई !

भीष्म हमारे रक्षक वीर, भीम शत्रुओं के नेता हैं
ग्यारह अक्षौहिणी निज सेना, मात्र सात विपक्ष में हैं

शंख बजे, बजे नगाड़े
रणभेरी सुन सब थर्राए,
हुआ भयंकर नाद जब
गोमुख व दमामे बजाए !

श्रीकृष्ण का रथ अद्भुत, मणियों से खंचित है
मेघों की आवाज करे, श्वेत अश्व सज्जित हैं

सुंदर ग्रीवा कर्ण लाल हैं
पैरों में स्वर्ण नुपुर,
बजा रहे निज शंख अनोखा
कृष्ण विराजे रथ ऊपर !

‘पांचजन्य’ शंख कृष्ण का, ‘देवदत्त’ वीर अर्जुन का,
भीमसेन का ‘पौण्ड्र’ कहाए, ‘अनंतविजय’ धर्मराज का !

अर्जुन बोला तब केशव से,
मध्य में ले चलो मुझे,
कौन-कौन हैं जरा देख लूँ
 प्राणों का भय नहीं जिन्हें !

कृष्ण हांकते रथ हौले से, ले आये ठीक मध्य में
भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, प्रिय अति, मातुल दिखे

था अति कोमल उर अर्जुन का,
कांप उठा जो लख अपनों को,
बहा स्वेद, अंतर अकुलाया,
बोला उसने तब केशव को !

नहीं चाहिए राज्य मुझे, विजय भी नहीं चाहता हूँ,
परिजनों का करके वध मैं, स्वर्ग भी नहीं मांगता हूँ

माना ये दोषी हैं हमारे
दुःख दारुण बहुत दिये हैं,
माना पाप किया इन्होंने,
कष्ट हमने बहुत सहे हैं !

लेकिन ये अपने हैं फिर भी, क्यों पाप कमाऊँ इन्हें मार
तज कर धनुष-बाण अर्जुन, जा बैठा पीछे रथ में हार ! 


अनिता निहालानी
२७ २०११







5 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रशंग पर बढिया रचना।

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  2. बहुत सुन्दर .... आगे अध्यायों का इंतज़ार रहेगा

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  3. बहुत सुन्दर ....

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  4. सुंदर शब्दों में बाँधा है गीता के कुछ प्रसंगों को .... लाजवाब ...

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  5. इतनी सुंदर ज्ञानवर्धक श्रंखला प्रारंभ करने के लिए आपको हार्दिक बधाई....!!

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