Wednesday, May 18, 2011

इस वर्ष


इस वर्ष

हवा की छुवन, सोंधी महक माटी की
और इस जग की जितनी भी प्यारी सौगातें है

इस जन्मदिन पर इन्हें
ईश्वर का उपहार मान कर देखो !

प्यार, जो नसों में रक्त के साथ बहता है
हँसी, जो शिराओं में हर उस वक्त घुली रहती है
जब मन साफ धुला होता है

प्यार, हँसी और इस जग की
जितनी भी अनमोल सौगातें है

इस वर्ष इन्हें
त्योहार मान कर देखो !

अनिता निहालानी
१८ मई २०११ 

5 comments:

  1. वाह,क्या बात है अनिता जी !
    बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण !

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  2. इस वर्ष इन्हें
    त्योहार मान कर देखो
    आपकी सोंच को नमन , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. जन्‍मदिन के लिए सुन्‍दर शव्‍द सुमन.

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  5. "प्यार, हँसी और इस जग की
    जितनी भी अनमोल सौगातें है"

    इन्हें बनाए रखना चाहिए...!!

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