Thursday, May 5, 2011

अब न कोई राज छिपे


अब न कोई राज छिपे

बहुत हो गयी आंखमिचौली
बहुत छकाया है तुमने,
बहुत झुलाया उड़नखटोला
बहुत दिखाए हैं सपने !

सांपसीढ़ी का खेल नहीं अब
 फलक कभी, जमीं दिखाते
पल भर की बस झलक दिखा के
फिर पर्दों में छिप जाते !

अब तो अंतिम बेला आयी
आर-पार का युद्ध चले
मान मनौवल बहुत हो गया
अब ना कोई राज छिपे !

जो त्याज्य है जायेगा अब
सिहांसन खाली होगा
आकर वही विराजेगा जो
 उपवन का माली होगा !

अनिता निहालानी
५ मई २०११ 

6 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  2. EXCELLENT....

    WELCOME ON MY BLOGS.

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  3. जो त्याज्य है जायेगा अब
    सिहांसन खाली होगा
    आकर वही विराजेगा जो
    उपवन का माली होगा !
    ekdam sahi kaha hai....

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  4. क्या ही मधुर चाह है!मान गए .

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  5. बेहद खूबसूरत चिंतन और वर्णन ।

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