यही सिलसिला है
किसी शाम हँस कर, कहा गुलमोहर ने
ली अम्बर से लाली, औ खुशबू जमीं से
हवा ने संवारा, खिलाया किरण ने
दी बदली ने ठंडक, खुशी जिंदगी ने
ये खुशबू ये रंगत, हैं जग के लिये
धरती, पवन और गगन के लिये
ये तोहफे जो कुदरत ने, सौंपे मुझे
हैं उसकी अमानत, चमन के लिये
कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
लौटना यहीं है यही सिलसिला है !
अनिता निहालानी
२१ मई २०११
ये तोहफे जो कुदरत ने, सौंपे मुझे
ReplyDeleteहैं उसकी अमानत, चमन के लिये
कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
लौटना यहीं है यही सिलसिला है
गुलमोहर के माध्यम से सुन्दर सन्देश देती रचना ..
कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
ReplyDeleteलौटना यहीं है यही सिलसिला है !
यही जीवन का असली अर्थ है हम सबकी ज़िन्दगी का भी मगर हम समझते कहाँ हैं इस बात को…………शानदार प्रस्तुति।
sach...kuch bhi apna nahin hai, bahut gahri baat
ReplyDeleteसुंदर, प्रेरक रचना।
ReplyDeleteकुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
ReplyDeleteलौटना यहीं है यही सिलसिला है !
बहुत सुन्दर...!
कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
ReplyDeleteलौटना यहीं है यही सिलसिला है !
सचमुच...
कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
ReplyDeleteलौटना यहीं है यही सिलसिला है !
bahut sunder bhav .