Saturday, May 21, 2011

यही सिलसिला है


यही सिलसिला है

किसी शाम हँस कर, कहा गुलमोहर ने
ली अम्बर से लाली, औ खुशबू जमीं से

हवा ने संवारा, खिलाया किरण ने
दी बदली ने ठंडक, खुशी जिंदगी ने

ये खुशबू ये रंगत, हैं जग के लिये
धरती, पवन और गगन के लिये

ये तोहफे जो कुदरत ने, सौंपे मुझे
हैं उसकी अमानत, चमन के लिये

कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
लौटना यहीं है यही सिलसिला है !

अनिता निहालानी
२१ मई २०११ 

7 comments:

  1. ये तोहफे जो कुदरत ने, सौंपे मुझे
    हैं उसकी अमानत, चमन के लिये

    कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
    लौटना यहीं है यही सिलसिला है

    गुलमोहर के माध्यम से सुन्दर सन्देश देती रचना ..

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  2. कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
    लौटना यहीं है यही सिलसिला है !

    यही जीवन का असली अर्थ है हम सबकी ज़िन्दगी का भी मगर हम समझते कहाँ हैं इस बात को…………शानदार प्रस्तुति।

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  3. sach...kuch bhi apna nahin hai, bahut gahri baat

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  4. सुंदर, प्रेरक रचना।

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  5. कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
    लौटना यहीं है यही सिलसिला है !
    बहुत सुन्दर...!

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  6. कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
    लौटना यहीं है यही सिलसिला है !
    सचमुच...

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  7. कुछ अपना नहीं, सब जहाँ से मिला है
    लौटना यहीं है यही सिलसिला है !
    bahut sunder bhav .

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