Sunday, May 15, 2011

श्रद्धा सुमन





श्रद्धा सुमन

दीप जला श्रद्धा का मन में
जिस क्षण हमने तुम्हें निहारा,
भाव उठा समर्पण का तब
जब से तुमने हमें पुकारा !

उठी प्रार्थना गहरे तल से
पल में जा पहुंची जो तुम तक,
डोर बंधी है एक अगोचर  
भेज रहे संदेशे हम तक !

ज्ञान की ज्योति जलाते भीतर
दुःख अग्नि पर जल बरसाते,
खुशियों की बरसात बन सदा
अंतर आंगन को महकाते !

हम सा बन के रहते हम में
खुद में स्वयं बन के रहते,
उस अदृश्य, अगम रब से मिल
सहज स्नेह ही बांटा करते !

जग सीमित पर वह अनंत है
सत्य एक है सदा अटल,
मायाधीश बड़ा माया से
निरंकार, निर्भय, निर्मल !

प्रेम तत्व से बना ईश्वर
उससे एक हुए तुम रहते,
हमें बुलाते अपने घर में
‘मुक्त हो रहो’ इतना कहते !

‘ध्यान समाधि’ से उस घर के
रस्ते से पहचान बना लो,
फिर जब चाहे जा सकते हो
जरा हृदय में उसे बसा लो !

दिल के इतने हो करीब तुम
तुमसे कुछ भी नहीं छुपा है,
हम जो भी हैं जैसे भी हैं
सदा प्रेम से हमें भरा है !
   
हो आनंद के इक निर्झर तुम
भिगो रहे निज शीतलता में,
दिव्य चेतना की हो मूरत
जगा रहे हो हमें ज्ञान में !

उसी ज्ञान में भस्म हो रहे
संस्कार अशुभ कर्मों के,
द्वन्द्वों से पूर्ण है यह जग
परे आत्मा सब धर्मों से !

सहज रहें, संघर्ष भी करें
द्वन्द्वों का हम करें सामना,
तेरी नजरों से जब देखें
सहयोग की बढ़े भावना !

हर पल तुम हो साथ हमारे
इससे बड़ा न कोई आश्रय,
घर जा पहुँचे तुमसे मिलकर
मिटी ग्लानि और सारे संशय !

अनिता निहालानी
१५ मई  २०११ 

6 comments:

  1. फाण्ट जरा बढ़ा दिजिये तो पढ़ने में आराम रहे.

    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है.

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  2. वाह ………भावो का निर्झर दरिया बह रहा है।

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  3. गुरुजन कहते हैं कि रोज सत्संग करना चाहिये,इस कविता को पढ़ते-पढ़ते लगा,किसी सत्संग में ही हैं,सो आज का सत्संग तो हा गया.

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  4. आप सभी का आभार ! संत जनों की कृपा से ही सत्संग मिलता है !

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति है

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  6. ‘ध्यान समाधि’ से उस घर के
    रस्ते से पहचान बना लो,
    फिर जब चाहे जा सकते हो
    जरा हृदय में उसे बसा लो !

    main bhi uske gahre prem mein hun..aur nit din usko jeeti hun apni har saans mein..wahee mere saath hota hai hamesha ..saaye ki tarah..! Parampita ki sharan mein hun..!

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