Tuesday, May 3, 2011

जीवन चलते-चलते बीता


जीवन चलते-चलते बीता

थके कदम दो पल सुस्ता लें
कहीं न मिलती छांव,
जीवन चलते-चलते बीता
पाया नहीं पड़ाव !

काल शिकारी घात लगाये
बैठा लेकर दांव,
कब पासा सीधा पड़ जाये
थम जाएँ कब पांव !

क्या खोया क्या पाया हमने
कोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !

अनिता निहालानी
३ मई २०११
  

7 comments:

  1. क्या खोया क्या पाया हमने
    कोई नहीं हिसाब,
    जीवन भूलभुलैया या फिर
    इक जादुई किताब !

    सच में जिन्दगी भूल भुलैया का ही तो नाम है |
    बहुत सुन्दर रचना |

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  2. क्या खोया क्या पाया हमने
    कोई नहीं हिसाब,
    जीवन भूलभुलैया या फिर
    इक जादुई किताब !


    शायद कभी हम जान सकें..
    सुन्दर रचना |

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  3. क्या खोया क्या पाया हमने
    कोई नहीं हिसाब,
    जीवन भूलभुलैया या फिर
    इक जादुई किताब !jindgi ki suchaai ko apne sabdo me dhaal diya... bhut hi acchi rachna...

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  4. क्या खोया क्या पाया हमने
    कोई नहीं हिसाब,
    जीवन भूलभुलैया या फिर
    इक जादुई किताब !


    खोने को तो संसार है मगर पाने को सिर्फ "नेकी"

    आभार.

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  5. काल शिकारी घात लगाये
    बैठा लेकर दांव,
    कब पासा सीधा पड़ जाये
    थम जाएँ कब पांव

    bilkul theek ..

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