पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे
नृत्य समाया हर मुद्रा में
उर में वीणा की झंकार
कंठ उगाए गीत मधुरिमा
कहाँ छिपा था इतना प्यार ?
आधी रात उजाला बिखरा
नयनों में ज्यों भरी पुकार
जागे-जागे स्वप्न हो गए
लगता है कोई चमत्कार !
पुलक उठे है पोर-पोर में
धड़क रहा है यूहीं दिल
कोई खबर भोर की लाए
क्या करीब है अब मंजिल ?
इच्छा, ज्ञान, क्रिया शक्ति के
पार हुआ मन अब मुक्ति के
खुले पट सब स्पष्ट हो गया
पुष्प खिले हैं जब भक्ति के !
नर्तक कौन, कौन कवि है
कौन सुनाये, सुनता वीणा
कौन तलाश रहा मंजिल को
कोई भी नही वहाँ दीखता !
एक तत्व का खेल है सारा
वही प्रिय वही प्रियतम प्यारा
स्वयं ही गाये झूमे स्वयं ही
प्रेम गली में न दो का पसारा !
अनिता निहालानी
२७ अप्रैल २०११
madhur
ReplyDeleteवहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सही कहा आपने। एक ही तत्व का खेल है, पर इस खेल को समझ बहुत कम लोग पाते हैं।
ReplyDelete---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
आप मेरे ब्लॉग पे आये अच्छा लगा और आपके विचारो पड कर मन प्रसन हो गया बस आप से येही आशा है की अप्प असे ही मेरा उत्साह बढ़ाते रहेंगे और अपने कुछ गलतियों की बात की जो आगे से मैं जरुर धयान में रखुगा
ReplyDeleteधन्यवाद्
एक तत्व का खेल है सारा
ReplyDeleteवही प्रिय वही प्रियतम प्यारा
स्वयं ही गाये झूमे स्वयं ही
प्रेम गली में न दो का पसारा ..
गहन दर्शन की बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
रहस्यवादी ,सुन्दर कविता । शुभकामनाओं के लिये ह्रदय से आभारी हूँ ।
ReplyDeletehridaygrahi manoram srijan achha laga .abhhar ji
ReplyDeletenice .....
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteaap bahut hi bahut hi bahut hi accha likhte ho :)shabdo ka chayan bahut hi accha aur shabdon is prakar se aapne piroya hai jaise koi suon ko pirota hai ek manmohak geet main, adbhut hai bahut madhur aur sundar....
ReplyDeleteअक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
इच्छा, ज्ञान, क्रिया शक्ति के
ReplyDeleteपार हुआ मन अब मुक्ति के
खुले पट सब स्पष्ट हो गया
पुष्प खिले हैं जब भक्ति के !
मन को सुकून देती रचना ..
'prem gali me na do ka pasaara'
ReplyDeletesaty vachan...
एक तत्व का खेल है सारा
ReplyDeleteवही प्रिय वही प्रियतम प्यारा
स्वयं ही गाये झूमे स्वयं ही
प्रेम गली में न दो का पसारा !
बहुत ही सुन्दर ! आभार.
एक तत्व का खेल है सारा
ReplyDeleteवही प्रिय वही प्रियतम प्यारा
goodh abhivyakti
lekin madhur..