मुक्ति का बाना सी लो
चाहो तो इक पल में जी लो
घूंट अमरता का पी लो
तोड़ पुरातन श्रृंखलाओं को
मुक्ति का बाना सी लो !
या फिर सारी उम्र बिता दो
कदम कदम पर बंधन झेलो
बांध आत्मा को पहरों में
खुद जग के हाथों खेलो !
या जग में स्वयं को खो दो
या स्वयं में स्वयं को पालो
सत्य मार्ग पर चलो अकेले
या परम्परा के सँग हो लो !
अनिता निहालानी
९ अप्रैल २०११
सत्य मार्ग पर चलो अकेले
ReplyDeleteया परम्परा सँग हो लो
बहुत सार्थक सन्देश ...
अनीता जी, बहुत ही सुंदर विचार हैं। बधाई।
ReplyDelete---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
या जग में स्वयं को खो दो
ReplyDeleteया स्वयं में स्वयं को पालो
सत्य मार्ग पर चलो अकेले
या परम्परा सँग हो लो !
सार्थक संदेश देती अच्छी रचना...
सुन्दर कविता है अनीता जी. मार्ग तो हमें ही चुनना है.
ReplyDeleteअनीता जी, बहुत ही सुंदर विचार हैं
ReplyDeleteया जग में स्वयं को खो दो
या स्वयं में स्वयं को पालो
सत्य मार्ग पर चलो अकेले
या परम्परा सँग हो लो !
बहुत सार्थक सन्देश .
bahut acchha sandesh deti rachna.
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