Saturday, April 9, 2011

मुक्ति का बाना सी लो

मुक्ति का बाना सी लो

चाहो तो इक पल में जी लो
घूंट अमरता का पी लो
तोड़ पुरातन श्रृंखलाओं को
मुक्ति का बाना सी लो !

या फिर सारी उम्र बिता दो
कदम कदम पर बंधन झेलो
बांध आत्मा को पहरों में
खुद जग के हाथों खेलो !

या जग में स्वयं को खो दो
या स्वयं में स्वयं को पालो
सत्य मार्ग पर चलो अकेले
या परम्परा के सँग हो लो !

अनिता निहालानी
९ अप्रैल २०११




6 comments:

  1. सत्य मार्ग पर चलो अकेले
    या परम्परा सँग हो लो

    बहुत सार्थक सन्देश ...

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  2. अनीता जी, बहुत ही सुंदर विचार हैं। बधाई।

    ---------
    प्रेम रस की तलाश में...।
    ….कौन ज्‍यादा खतरनाक है ?

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  3. या जग में स्वयं को खो दो
    या स्वयं में स्वयं को पालो
    सत्य मार्ग पर चलो अकेले
    या परम्परा सँग हो लो !

    सार्थक संदेश देती अच्छी रचना...

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  4. सुन्दर कविता है अनीता जी. मार्ग तो हमें ही चुनना है.

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  5. अनीता जी, बहुत ही सुंदर विचार हैं

    या जग में स्वयं को खो दो
    या स्वयं में स्वयं को पालो
    सत्य मार्ग पर चलो अकेले
    या परम्परा सँग हो लो !

    बहुत सार्थक सन्देश .

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