हृदय वृक्ष से शब्द झरे
हृदय वृक्ष से शब्द झरे कुछ अनायास ही
ज्यों बिखराएँ आँसूं आँखें हो उदास सी !
हवा चली औ शब्द उड़ गए
सँग मेघ के फिर बिखर गए
बूंदों की लड़ियों सँग आकुल
पानी की झड़ियों में व्याकुल
यूँ ही डोलते राज खोलते अनायास ही
ज्यों बिखराएँ आँसूं आँखें हो उदास सी !
शब्द कभी कोमल बन जाते
बन माला उर से लिपटाते
कभी क्रुद्ध हो दूर भागते
बेगाने से रहे सताते
यूँ ही चिढ़ाते कभी बुलाते अनायास ही
ज्यों बिखराएँ आँसूं आँखें हो उदास सी !
अनिता निहालानी
२५ अप्रैल २०११
शब्द कभी कोमल बन जाते
ReplyDeleteबन माला उर से लिपटाते
कभी क्रुद्ध हो दूर भागते
बेगाने से रहे सताते
अनिता जी, गीत के आँगन में शब्द जैसे सजीव होकर थिरक रहें हैं !
आभार !
bahut achhi abhivyakti
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब कहा है ।
ReplyDeleteहृदय वृक्ष से शब्द झरे कुछ अनायास ही......
ReplyDeletewah.kya upma di hai.......
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति। आभार|
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