Tuesday, April 5, 2011

नियति है मिलन अपना

नियति है मिलन अपना

तुम कसो कसौटी पर
लो चाहे कितनी ही परीक्षाएं
चूर-चूर कर डालो वह अभिमान
जो मुझे तुमसे दूर किये हुए है
न रहे शेष कोई आस
न चाह
हो जाये जीते जी मृत्यु
न उठे कोई सवाल न जगे प्रतिक्रिया
पत्थर की मानिंद सहूँ
तपन, बौछार और बर्फीली पवन
हो जाये जर्जर तन
मर जाये भले मन
हूँ मैं तैयार
तुम करो वार
इस पीड़ा के पीछे छुपा है आनंद
मरता है जब बीज  
पौधा जन्मता है उसी क्षण
मरना होगा इस जिजीविषा को
अस्मिता को भी
हर उस शै को
जो तुम्हें मुझसे जुदा करती है
परखो मुझे
डालो परीक्षाओं में
चाहे जितना घिसो
तपाओ मुझे
 मेरी नियति है वह मिलन जो
होगा मेरा तुमसे !

अनिता निहालानी
५ अप्रैल २०११

7 comments:

  1. न रहे शेष कोई आस
    न चाह
    हो जाये जीते जी मृत्यु
    न उठे कोई सवाल न जगे प्रतिक्रिया
    पत्थर की मानिंद सहूँ ....


    जीते जी यह सब कैसे संभव है .....।

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  2. परखो मुझे
    डालो परीक्षाओं में
    चाहे जितना घिसो
    तपाओ मुझे
    मेरी नियति है वह मिलन जो
    होगा मेरा तुमसे !
    आत्मविश्वास भरी , सुन्दर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें

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  3. मेरी नियति है वह मिलन जो
    होगा मेरा तुमसे !

    सुंदर भावाभिव्यक्ति...

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  4. सदा जी, यह असंभव को संभव कर देने की कला ही तो प्रेम है !

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  5. दीदी, हिम्मत भी वही देता है !

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  6. अनीता जी ..
    यह रचना ऐसी लगी जैसे आपने मेरी भावनाओं को शब्द दे दिए हैं ...दिल को छू गयी एकदम ..

    शुक्रिया

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