मौन धारे झर गया भीतर समन्दर
रिक्तता को भर गया चुपचाप इक स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
दृग झुके कर जुड़ गए
पग थमे फिर मुड गए
अल्पता को हर गया अन्जान इक स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
स्वर नहीं वह आरती का
न गीत वन्दन भारती का
तप्तता को हर गया वरदान सा स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
ताल सुर से बद्ध न था
शास्त्र से सम्बद्ध न था
दग्धता ले दे गया अनुराग इक स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
थी सुरीली कूक कोकिल कंठ में
जो जगाती हुक उर आकंठ में
शून्यता को भर गया मधुराग सा स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
अनिता निहालानी
२१ अप्रैल २०११
बहुत ही सुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeleteअनीता जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है अपने....ऐसा अनुराग का स्वर ही तो परिपूर्ण कर देता है....
क्या पंक्तियाँ है..कमाल है एकदम..
थी सुरीली कूक कोकिल कंठ में
जो जगाती हुक उर आकंठ में
शून्यता को भर गया मधुराग सा स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
मौन धारे झर गया भीतर समंदर ... क्या खूब शब्द दिए हैं आपने अनुभूति को... नमन ..!!
थी सुरीली कूक कोकिल कंठ में
ReplyDeleteजो जगाती हुक उर आकंठ में
शून्यता को भर गया मधुराग सा स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
ह्रदय में हूक जगती हुई रचना ...!!
बहुत ही सुमधुर लेखनी है आपकी ...इसमें कोई शक नहीं...!!
थी सुरीली कूक कोकिल कंठ में
ReplyDeleteजो जगाती हुक उर आकंठ में
शून्यता को भर गया मधुराग सा स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ..उत्कृष्ट रचना अनिताजी....
पढ़ कर आनंद आ गया,सूक्ष्म भावनाओं को शब्दों में पकड़ने की अदभुत कला है तुम्हारे पास.
ReplyDeleteनिर्झर जैसा प्रवाह लिए सुन्दर रचना!
ReplyDeleteरिक्तता को भर गया चुपचाप इक स्वर
ReplyDeleteमौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
दृग झुके कर जुड़ गए
पग थमे फिर मुड गए
अल्पता को हर गया अन्जान इक स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर अनीता जी आपके मधुर गीत की ये पंक्तियाँ भीतर तक भिगो देती हैं । बहुत सरस गीत है । आप अपनी कविताएँ विश्व प्रसिद्ध वेबसाइट अनुभूति पर भी भेजिए और आप उनकी अभिव्यक्ति पर अनवरत प्रसारित नवगीत की पाठशाला में भी हिस्सा लीजिए । पते आपके पास होंगे ही फिर भी दे रहा हूँ- http://www.anubhuti-hindi.org/ http://www.abhivyakti-hindi.org/
ताल सुर से बद्ध न था
ReplyDeleteशास्त्र से सम्बद्ध न था
दग्धता ले दे गया अनुराग इक स्वर
मौन धारे झर गया भीतर समन्दर !
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
हार्दिक बधाई।
निर्झर झरना बह रहा है।
ReplyDeleteमौन धारे झर गया भीतर समन्दर ...
ReplyDeleteपरमानन्द के समन्दर में रहना अच्छा लगता है.
सुन्दर रचना....बधाई
anurag aur madhurag ke swar aise hi hote hain jo man ki har tapan ko har lete hain. sunder prastuti.
ReplyDeleteदग्धता ले दे गया अनुराग इक स्वर
ReplyDeleteमौन धारे झर गया भीतर समन्दर ...
Sach hai prem ka ek shabd ... paashaan ko pighla deta hai ... sundar bhaav ...