Wednesday, March 9, 2011

अनुराग बहे भीतर

अनुराग बहे भीतर

जड़ता से मुक्त हो मन  
आओ नव सृजन करें,
बिखरा दें श्रम सीकर  
सुमनों से धरा भरें !

संतोषी अंतर मन
पुलकित हो गात सदा,
जीवन को खेल समझ
बढ़ती हो बात सदा !

विराग ना राग रहे
अनुराग बहे भीतर,
प्रमाद पिघल जाये
बस जाग रहे भीतर !

भावों के दीप जलें
विवाद ना शुष्क करें
कण-कण कृतज्ञ रहे
जन्मों का दर्द हरें !

अग्निमय नेत्र जले
भीतर आनंद पले, 
युग-युग से मुरझाया
जीवन का पुष्प खिले !

अनिता निहालानी
मार्च २०११

9 comments:

  1. अग्निमय नेत्र जले
    भीतर आनंद पले,
    युग-युग से मुरझाया
    जीवन का पुष्प खिले !

    बहुत सुन्दर आहवान

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  2. प्रमाद पिघल जाये
    बस जाग रहे भीतर !

    यह प्रमाद ही तो दुर्भावनाओं की जड़ है ...बहुत सुन्दर रचना

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  3. भावों के दीप जलें
    विवाद ना शुष्क करें
    कण-कण कृतज्ञ रहे
    जन्मों का दर्द हरें !

    सार्थक सन्देश देती बहुत प्रेरक रचना..आभार

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  4. बहुत अच्छी भावना लिए कविता अच्छी लगी।

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  5. भावों के दीप जलें
    विवाद ना शुष्क करें
    कण-कण कृतज्ञ रहे
    जन्मों का दर्द हरें !

    सुन्दर शब्द संयोजन !सुन्दर रचना

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  6. आदरणीय अनीता जी , सादर प्रणाम

    आपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html

    इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.

    और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.

    धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........

    मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. यदि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.


    आपकी प्रतीक्षा में...........

    हरीश सिंह


    संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/

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  7. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर ।

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  8. अग्निमय नेत्र जले
    भीतर आनंद पले,
    युग-युग से मुरझाया
    जीवन का पुष्प खिले !
    सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई!

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  9. adbhut rachna ...-sunder sandesh deti hui ...!!

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