Tuesday, March 8, 2011

कैवल्य

कैवल्य

घिरा अविद्या से मानव, उसे डराता यह तथ्य
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !

मुक्ति के विचार से डरता, मोहपाश में फिर फिर फंसता
आँख चुराता है प्रकाश से, अंधकार में जाता धंसता
है यही नग्न सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !

अहंकार को पोषित करता, गर्त में गिरता जाता
सुख की चाहत में दुःख के ही, बीज गिराता जाता
जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !

सूत्र छिपे मुक्ति के, जब बंधन लगे सलोना
झूठ का पलड़ा भारी, सत्य लगे जब बौना
कहलाता परम सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !

अनिता निहालानी
८ मार्च २०११



4 comments:

  1. अहंकार को पोषित करता, गर्त में गिरता जाता
    सुख की चाहत में दुःख के ही, बीज गिराता जाता
    जीवन का अंतिम लक्ष्य, बस एकमात्र कैवल्य !
    सत्य है !
    आपकी कवितायें जीवन- दर्शन का मार्ग प्रशस्त करती हैं !
    अनिता जी, बहुत बहुत आभार !

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  2. बहुत सुंदर भाव लिए छंदबद्ध रचना।

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  3. मुक्ति के विचार से डरता, मोहपाश में फिर फिर फंसता
    आँख चुराता है प्रकाश से, अंधकार में जाता धंसता
    है यही नग्न सत्य, बस एकमात्र कैवल्य !

    जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना के लिए बधाई।

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