Friday, March 4, 2011

इक पल

इक पल

कितनी अद्भुत शक्ति समाये  
अनगिन भीतर भेद छिपाए
देखो, अगला पल आता है !

खो जाये न पकड़ो इसको
मन की डोर से जकड़ो इसको
देखो, पल में यह जाता है !

अनिता निहालानी
४ मार्च २०११

8 comments:

  1. जिसने इस पल को पकड़ लिया वही तो इस पल की गिनती से मुक्त हो गया

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  2. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  3. आपका यह ब्लॉग पहली बार पढ़ा ..कई रचनाएँ पढ़ गयी ...गहन चिंतन को समेटे हुए ...बहुत अच्छी लगी सारी कविताएँ ...

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  4. देखो, पल में यह जाता है !
    kitni sachchi baat kah di pal hi men...

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  5. सुंदर भावाभिव्यक्ति...

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  6. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता . बधाई

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  7. बहुत ही सुन्‍दर ।

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  8. बहुत गहन चिंतन..हर पल को पकडना ही जीवन में सफलता का राज है..बहुत सुन्दर

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