श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
क्रिया, चिंता और वासना का त्याग
अहंकार का निग्रह कर के, पुनः इसे जीवित न करना
ज्यों जल से पादप जी उठता, विषय चिंतन अहंकार जिलाता
देहात्म बुद्धि है जिसमें, वही वासना ग्रस्त रह सकता
देह अध्यास नहीं है जिसका, आत्मा नहीं सकाम हो सकता
कार्य बढ़े तो बीज बढ़ेगा, कार्य नाश से नाश बीज का
इच्छा से कार्य बढ़ता है, कार्य से बढ़ती है वासना
जग बंधन से मुक्ति जो चाहे, दोनों का ही नाश करे
विषय चिंतन व बाह्य क्रिया, वासना की ही वृद्धि करे
सब जगह जो ब्रह्म ही देखे, हर काल व हर देश में
ब्रह्म वासना दृढ़ होने पर, जगत वासना का लय होवे
क्रिया नष्ट हो, चिंता जाती, क्षय वासना का भी होता
मोक्ष इसे ही तो कहते हैं, जीवन मुक्ति भी कहलाता
सूर्य प्रभा तिमिर हटाती, ब्रह्म वासना अहंकार मिटाती
जग बंधन तब न रहता है, दुःख की गंध भी न रह जाती
क्रिया नष्ट हो, चिंता जाती, क्षय वासना का भी होता
ReplyDeleteमोक्ष इसे ही तो कहते हैं, जीवन मुक्ति भी कहलाता
....बहुत सुंदर...आभार
सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआभार !
जग बंधन से मुक्ति जो चाहे, दोनों का ही नाश करे
ReplyDeleteविषय चिंतन व बाह्य क्रिया, वासना की ही वृद्धि करे
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ठीक यही श्री कृष्ण गीता में भी कहते हैं - हे पार्थ - ऊपर से कर्मेन्द्रियों को बाँध कर जो भीतर से इन्द्रियों के विषयों का चिंतन करते रहते हैं - वे इन्द्रियों में बंधे ही रहते हैं |