श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
आत्मस्वरूप क्या है (शेष भाग)
घट, जल व प्रतिबिम्ब को जैसे, ज्ञानी भिन्न सूर्य से माने
देह, बुद्धि व चिदाभास को, तज साक्षी आत्मा जाने
है अखंड बोध स्वरूप, नित्य, विभु, सूक्ष्म, आत्मा
मन आदि का वही प्रकाशक, भीतर-बाहर सर्वगत आत्मा
जो स्वयं से अभिन्न जानता, निर्मल और अमर हो जाता
पाप रहित हो निज में टिकता, सत् असत् से पार हो जाता
शोक रहित आनंद घन वह, प्राप्त अभय को हो जाता है
जग बंधन से छूटना चाहे, आत्मतत्व को ही पाता है
ब्रह्म आत्मा के अभेद का, ज्ञान जीव को मुक्ति देता
जन्म-मरण से बच कर वह, ज्ञानस्वरूप ब्रह्म में टिकता
आत्मस्वरूप का अद्भुत ज्ञान!
ReplyDeleteअभूतपूर्व ...ज्ञानवर्धक ...रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर , आभार.
ReplyDeleteअनिता जी...बहुत ही सुंदर व्याख्या..ज्ञान से भरा...लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत ज्ञानपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति...आभार
ReplyDelete