ब्रह्म भावना
स्थिर नहीं है जग में कुछ भी, एक तत्व आकाश समान
देह आदि मिथ्या लगते, जब शुद्ध ब्रह्म का होता ज्ञान
मृतिका का घट मृतिका ही है, सत् से उत्पन्न जगत भी सत्
सत् से परे न कुछ भी स्थित, तुम भी वही ब्रह्म हो सत्
स्वप्न जगत ज्यों मिथ्या होता, जाग्रत में भी ऐसा मानो
शांत, निर्मल और अद्वितीय, वही ब्रह्म तुम स्वयं को जानो
नीति, कूल गोत्र से परे, नाम-रूप, गुण-दोष रहित
देश, काल,वस्तु से पृथक, वही ब्रह्म हो करो भावना !
वाणी जिस तक पहुँच न पाती, परे प्रकृति से है अनादि
ज्ञान चक्षुओं से ही जानें, उसी ब्रह्म की करो भावना
क्षुधा-पिपासा आदि न जिसमें, इन्द्रियों से न ध्याया जाता
ऐश्वर्यवान परे बुद्धि से, उसी ब्रह्म की करो भावना
जो आधार इस भ्रांत जगत का, स्वयं के ही आश्रित है जो
सत् असत् परे दोनों से, निरवयव अनुपम है जो
जन्म, वृद्धि, परिणति, अपक्षय, व्याधि और नाश न जिसमें
सृष्टि, पालन, विनाश का कारण, उसी ब्रह्म की करो भावना
एक है पर अनेक का कारण, अन्यों के निषेध का कारण
स्वयं पृथक कार्य कारण से, उसी ब्रह्म की करो भावना
निर्विकल्प, महान अविनाशी, क्षर, अक्षर परे दोनों से
नित्य अव्यय, निष्कलंक जो, उसी ब्रह्म में करो भावना
सत् सर्वदा निर्विकार है, भ्रम वश नामरूप में भासे
गुणातीत है निर्विकल्प भी, उसी ब्रह्म की करो भावना
जिसके परे और न कोई, स्वयं प्रकाशित है जो सत्ता
अव्यय यह आनंद स्वरूप है, जो अनंत अंतर आत्मा
वही ब्रह्म हो तुम विचारो, बुद्धि से फिर करो यह बोध
ज्यों अंजुरी में जल भरा हो, संशय रहित तत्व का बोध
ज्यों सेना में राजा शोभे, रहे आत्मा पंच भूतों में
स्वयंप्रकाश विशुद्ध तत्व है, दृश्य जगत हो लीन उसी में
सत् असत् से परे विलक्षण, बुद्धिरूप गुहा में रहता
परब्रह्म का बोध जिसे हो, पुनः जन्म न उसका होता
बहुत ज्ञानवर्धक कार्य कर रही हैं आप्…………नमन्।
ReplyDeleteसत् असत् से परे विलक्षण, बुद्धिरूप गुहा में रहता
ReplyDeleteपरब्रह्म का बोध जिसे हो, पुनः जन्म न उसका होता
बहुत सुन्दर जीवन का सार सिखाती खूबसूरत रचना |
ज्यों सेना में राजा शोभे, रहे आत्मा पंच भूतों में
ReplyDeleteस्वयंप्रकाश विशुद्ध तत्व है, दृश्य जगत हो लीन उसी में
अध्यत्मिक पाठ-सा सुख अन्य नहीं।
आज का अनुवाद तो प्रतिदिन की प्रार्थना की तरह है.अति उत्तम.
ReplyDeleteकई बार पढ़ गयी...
ReplyDeleteसोचा कि कोई दो पंक्तियाँ select कर के कुछ लिखूं,
लेकिन आपने असमर्थ कर दिया हर जगह..
किसी एक को चुनुं तो दूसरी के साथ नाइंसाफी होगी...
सारी ही अपने आप में पूर्ण और सुन्दर हैं
सुन्दर रचना के लिए बधाई...!!
बहुत सुन्दर! आभार!
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