Sunday, November 27, 2011

अहं पदार्थ निरूपण


श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि

अहं पदार्थ निरूपण

दृश्य जगत क्षणिक दिखता है, अहं पदार्थ नहीं हो सकता
सत् असत् से है विलक्षण, सुषुप्ति में भी जाना जाता

स्थूल-सूक्ष्म दोनों देहों का, अभाव भी देखा जाता है
जो विकारी को जाने, स्वयं अविकारी हो सकता

तीनों काल में है अबाधित, ज्ञान स्वरूप अखंड आत्मा
देह अध्यास को तज हे साधक, त्यागो भाव कर्ता, भोक्ता

अहंकार निंदा

अहंकार है मूल विकार, आत्मा को ढके है रहता
अहंकार मुक्त हुए से, स्वयं प्रकाश आत्मा प्रकटता

मोह और अज्ञान से बुद्धि, देह को ही ‘मैं’ करके जाने
इसका जब भी हुआ निषेध, आत्मा निज स्वरूप को जाने

ब्रह्मानंद परम धन है, अहं सर्प ने इसे लपेटा
ज्ञानस्वरूप कटार से भेदे, तभी आत्मा पा सकता

देह में अल्प विष भी हो यदि, नहीं निरोगी रहने देता
लेश मात्र भी अहंकार हो, आत्मा को ढके रहता

अहंकार का नाश हुए से, आत्म तत्व प्रकट होता है
कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि तज, आत्मानंद प्राप्त होता है

4 comments:

  1. अहंकार है मूल विकार, आत्मा को ढके है रहता
    अहंकार मुक्त हुए से, स्वयं प्रकाश आत्मा प्रकटता
    अहंकार त्याज्य है!
    इस ज्ञान गंगा से कुछ मोती भी चुन लिए जाएँ तो जीवन सफल हो!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

    ReplyDelete
  3. अहंकार है मूल विकार, आत्मा को ढके है रहता...

    व्यक्ति स्वंय को जब तक समझ नहीं सकता जब तक वो ये न मान ले की उसकी समझ में अभी तक कुछ भी नहीं आया है. अहंकार जिस ज्ञान/सूचनाओं पर होता है वो वास्तव में होती नहीं है और जो होती हैं उसे स्वीकारने में 'अहंकार' बाधक बन जाता है.

    व्यक्ति कहाँ से आया है और कहा जाएगा ? इस पर यदि विचार किया जाय तो मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं बैठता क्यों की न तो कुछ साफ़ साफ़ अब तक के संतों द्वारा प्रस्तुत किया गया है और न ही किसी शायद कभी होगा. मगर यदि हम ये माने की कोई अज्ञात शक्ति ही इन सब का संचालन कर रही है तो इसे मानने में वर्तमान का अर्जित ज्ञान जो विज्ञान पर आधारित है बाधक बन जाता है.

    प्रेरणा दाई पंक्तियाँ हैं सब आपकी....आभार.

    ReplyDelete
  4. अनुपमा जी, शुक्ल जी, व अरविन्द जी आप सभी का आभार!
    हमारा ज्ञान सीमित है अस्तित्त्व अनंत है...

    ReplyDelete