श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
साधन-चतुष्टय (चार साधन)
ज्ञानी और मनस्वी जन ने, चार मुख्य साधन बतलाये
जिनका पालन करने से ही, मन आत्मा में टिक जाये
नित्य-अनित्य वस्तु विवेक ही, पहला साधन है ज्ञान का
वैराग्य जिसने साधा है, तजे लोभ दोनों ही लोक का
षट् सम्पति का अधिकारी, ज्ञान साधना कर सकता है
मोक्ष की हो अभिलाषा जिसमें, वही ब्रह्म को पा सकता है
शम, दम, उपरति और तितिक्षा, संग हो श्रद्धा व समाधान
कहलातीं ये षट् सम्पतियाँ, जिनके द्वारा होता ज्ञान
ब्रह्म सत्य है जगत है मिथ्या, जो ऐसा निश्यच रखता
नित्य-अनित्य वस्तु विवेक, उस के ही उर में पलता
निज देह से ब्रह्म लोक तक, सब कुछ है अनित्य, जो जाने
क्या देखना, सुनना, कहे जो, उसमें ही वैराग्य मानें
व्यर्थ हैं विषय सुख सारे, हो विरक्त स्वय में रहता
मन का यूँ निग्रह करना ही, शम ऐसा है कहलाता
कर्मेंद्रियां व ज्ञानेद्रियाँ, विषयों से लौटा ली जातीं
अपने में ही शांत हो रहतीं, यही दम सम्पति कहलाती
मन की वृत्ति स्वयं में रहती, बाहर जाकर नहीं भटकती
इसी अवस्था को चित्त की, ज्ञानी कहते हैं उपरति
very good knowledge
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