Wednesday, September 21, 2011

अष्टदशोऽअध्यायः(शेष भाग) मोक्षसंन्यासयोग


अष्टदशोऽअध्यायः(शेष भाग)
मोक्षसंन्यासयोग


आत्मसंयमी, अनासक्त जो, मन को जीत लिया है जिसने  
सांख्ययोग द्वारा मन साधे, परम सिद्धि को पाया उसने

परमसिद्धि को कैसे पाता, जो ज्ञान की परम अवस्था
सुनो ध्यान से हे पार्थ तुम, संक्षेप में तुम्हें कह  रहा

बुद्धि शुद्ध हुई है जिसकी, धैर्य पूर्वक मन भी वश में
राग-द्वेष से मुक्त हुआ जो, दृढ वैरागी, मुक्त क्रोध से

ममतारहित शांत चित्त जो, वही ब्रह्म को पा सकता
अल्पहारी, एकांतप्रिय है, सदा ध्यान में डूबा रहता

दिव्य पद पर जो स्थित है, सदा प्रसन्न बना रहता
न ही शोक कभी वह करता, न कोई आकांक्षा करता

ऐसा समभाव युक्त जो, पराभक्ति को पा लेता है
एकी भाव से ब्रह्म में स्थित, परम सिद्धि को पा लेता

मैं जो भी हूँ, जितना भी हूँ, वैसा ही तत्व से जाने
पराभक्ति से मुझे जान कर, मुझमें ही प्रवेश कर जावे

कर्मों में जो रत है योगी, मेरी कृपा सहज है उस पर
परम पद प्राप्त कर लेता, मेरे सदा बना परायण

मन से मुझमें सब कर्मों को, अर्पित कर तू हे अर्जुन
समबुद्धि योग के आश्रित, चित्त मुझीमें, मेरे परायण

मुझमें चित्त लगायेगा यदि, कृपा से हों बाधाएं नष्ट
अहंकार वश यदि न सुने, परमार्थ से होगा भ्रष्ट
    
अहंकार वश युद्ध करे न, निश्चय तेरा यह मिथ्या है
विवश हुआ तू युद्ध करेगा, स्वभाव तेरा ऐसा ही है

मोह के वश जिस कर्म को त्यागे, परवश होकर उसे करेगा
अपने ही स्वभाव से उत्पन्न, कर्म तुझे बाधित कर देगा  

सब जीवों के हृदय में स्थित, निज माया से उन्हें से नचाता
देह यंत्र में हो आसीन, परमात्मा है परम विधाता

सब भांति से शरण में आ तू, परम शांति को तू पायेगा
परमात्मा की परम कृपा से, नित्य धाम में तू जायेगा

गोपन से भी अति गोपनीय, मैंने तुझे यह ज्ञान दिया है
कर विचार इस परम ज्ञान पर, वही कर, जो तुझे रुचा है 

3 comments:

  1. वाह अद्भुत ज्ञान गंगा बहायी है…………रोचक ।

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  2. गोपन से भी अति गोपनीय, मैंने तुझे यह ज्ञान दिया है
    कर विचार इस परम ज्ञान पर, वही कर, जो तुझे रुचा है

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  3. गूड़ ज्ञान....इतने सुंदर शब्दों में गीता का वर्नण...

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