श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
मंगला चरण
जो अज्ञेय परम पुरुष है, वेद-वाक्यों से जाना जाता
परमानंद स्वरूप सद्गुरु, गोविन्द हित नत मस्तक होता
ब्रह्मनिष्ठा का महत्व
मानव जन्म अति दुर्लभ है, उससे दुर्लभ जिज्ञासु होता
नित्य-अनित्य का भेद मनुज को, शुभ कर्मों के बिना न मिलता
ईश कृपा ही जिसका हेतु, मानव जन्म तभी मिलता है
मोक्ष की इच्छा भी दुर्लभ है, सद्गुरु मुश्किल से मिलता है
जिसको ऐसा मिला है अवसर, ज्ञान का पथ भी जिसे मिला है
आत्म मुक्ति का प्रयत्न न करे, स्वयं को उसने नष्ट किया है
जो न करता खोज स्वयं की, जो प्रमाद में घिरा हुआ है
कौन है उससे बढकर मूर्ख, जो अज्ञान में ही रहता है
शास्त्र सभी जानता कोई, पूजन यजन भी करता है
जब तक आत्मज्ञान न साधा, दूर मुक्ति से रहता है
धन से अमृत तत्व न मिलता, श्रुतियो में यह कहा गया
कुछ कर के भी पा न सकते, इससे ऐसा स्पष्ट हुआ
वाह्………ये तो अति उत्तम श्रृंखला शुरु कर दी है…………ज्ञान का होना भी जरूरी है।
ReplyDeleteशास्त्र सभी जानता कोई, पूजन यजन भी करता है
ReplyDeleteजब तक आत्मज्ञान न साधा, दूर मुक्ति से रहता है
और तुम आत्म ज्ञान का प्रकाश फैला रही हो,आभार.
यह सब नहीं पढ़ा था, आपके ब्लॉग को फॉलो करने से यह लाभ मिल रहा है।
ReplyDeleteसुन्दर श्रृंखला की शुरुआत!
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