Monday, June 20, 2011

भगवद्गीताका भावानुवाद, पंचमोऽध्यायः


पंचमोऽध्यायः
कर्मसन्यासयोग (शेष भाग)

नव द्वारों वाले इस घर में, ज्ञानीजन है सुख से रहता
न करता न ही करवाता, मन से सब कर्मों को तजता

रचता नहीं संयोग ईश्वर, कर्मों व कर्मों के फलों का
निज स्वभाव ही करा रहा है, वह न रचे कर्तापन को

ग्रहण करे न पाप-पुण्य को, ईश्वर सबसे रहे अलिप्त
ज्ञान ढका है अज्ञान से, मानव होते जिससे मोहित

तत्वज्ञान से नष्ट हो गया, जिसका वह घोर अज्ञान
सूर्य समान चमकता ईश्वर, उसके अंतर में यह मान

जिसका मन, बुद्धि है अर्पित, एकीभाव से उसमें स्थित
परमगति को पा लेता वह, हो जाता है पाप रहित

ऐसा ज्ञानी भेद करे न, ब्राह्मण, गज, गौ, चांडाल, श्वान में
समदर्शी है सदा विनयी वह, बढ़ा हुआ है जो ज्ञान में

समभाव में टिका हुआ जो, जीत लिया उसने संसार
सच्चिदानंद घन परमात्मा में, स्थित सम और निर्विकार

प्रिय पाकर जो हो न हर्षित, न उद्वगिन हो पाकर अप्रिय
स्थिर बुद्धि, संशय रहित वह, ब्रह्म वेत्ता परम को प्रिय

बाहर से टूटी आसक्ति, आत्मा के आनंद में डूबा
परमात्मा के ध्यानयोग में, अक्षय परमानंद को पाता

दुःख के हेतु भोग हैं सारे, हैं अनित्य जो लगें प्रिय
बुद्धिमान जो, दूर ही रहता, नहीं हैं उसके हित रम्य

देह नाश से पहले जो नर, काम-क्रोध पर विजय पा सके
वही पुरुष कहलाता योगी, केवल वही सुखी हो सके  

आत्मा में ही सुख पाता जो, आत्मा में रमण करता है
परमात्मा से एक हुआ जो, शांत ब्रह्म को पा लेता है

पाप नष्ट हुए हैं जिसके, संशय ज्ञान से मिट गए सारे
सर्व हितैषी, परम में स्थित, शांत ब्रह्म नित उसे पुकारे

काम-क्रोध से रहित हुआ, मन वश में, परम को पाया
ऐसा ज्ञानी चहुँ ओर से, शांत ब्रह्म में ही समाया

विषय भोग तज ध्यान निमग्न, इच्छा, भय क्रोध को त्यागे
प्राण-अपान को सम करके, आज्ञा चक्र में ध्यान टिकाये

मोक्ष की इच्छा प्रबल है जिसमें, मुक्त हुआ ही उसको जानो
मन, बुद्धि, इन्द्रियों को जीते, सदा परम में स्थित मानो  

ईश्वरों का भी जो ईश्वर है, सारे यज्ञों का जो भोक्ता
जन-जन का सुहृद है वह, ज्ञानी ऐसा ही मानता


3 comments:

  1. भगवद्गीता के ज्ञान को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने का बहुत सुन्दर प्रयास. बधाई.

    ReplyDelete
  2. भावानुवाद अत्यंत प्रवाहमय है!
    सादर!

    ReplyDelete
  3. जिसका मन, बुद्धि है अर्पित, एकीभाव से उसमें स्थित
    परमगति को पा लेता वह, हो जाता है पाप रहित
    sunder margdarshan ...
    abhar..

    ReplyDelete