तृतीय अध्याय (अंतिम भाग )
( कर्म योग )
किन्तु न मानें मेरे मत को, जो जन दोष निकाला करते
किन्तु न मानें मेरे मत को, जो जन दोष निकाला करते
मोहित हुए अज्ञानीजन वे, दुःख को प्राप्त हुआ करते
प्रकृति के अनुसार वर्तते, परवश हुए स्वभाव के अपने
ज्ञानवान भी नहीं बचे हैं, प्रकृति किसी का हठ न माने
इन्द्रियों में ही छिपे हुए हैं, राग-द्वेष ये दोनों शत्रु
जो न हो उनके वश में, वह कल्याण का पाता हेतु
निज धर्म में मृत्यु श्रेयस्कर, पर धर्म है भयकारी
चाहे कितना ही श्रेष्ठ हो, परधर्म न हितकारी
अर्जुन बोले हे केशव, यह पाप कौन करवाता है
न चाहते हुए भी मानव, क्यों इसमें फँस जाता है
काम, क्रोध ये दो शत्रु हैं, रजोगुण से जो उत्पन्न
नहीं तृप्ति होती है इनकी, कितना ही कोई करे जतन
जैसे ढकी धूल से अग्नि, दर्पण मैल से आच्छादित
गर्भ ढका है ज्यों जेर से, ज्ञान ढका काम से बाधित
जैसे अग्नि तृप्त न होती, डालें ईंधन पर ईंधन
ऐसे ही यह बढ़ता जाता, ढके हुए ज्ञान निशदिन
इन्द्रियों, मन बुद्धि में रहता, इनके ही द्वारा सेवित
मोहित करता जीवात्मा को, ज्ञान हो रहा इससे बाधित
वश में कर इन्द्रियों को तू, हे पार्थ ! मुक्त हो जा
ज्ञान-विज्ञान का नाश करें जो, डालें तुझे पाश मोह का
देह से परे सूक्ष्म इन्द्रियां, मन बलवान है इनसे
मन से भी सूक्ष्म है बुद्धि, आत्मा श्रेष्ठ है सबसे
इसी आत्मा को पाकर तू, मन, बुद्धि वश में कर ले
मन के पीछे चलें इन्द्रियां, तू पराजित काम कर ले
बहुत सुन्दर व्याख्या चल रही है……………आभार्।
ReplyDeleteबहुत सकारात्मक सन्देश...बहुत सुन्दर भावानुवाद..संग्रहणीय पोस्ट..बधाई
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुन्दर भावानुवाद| धन्यवाद|
ReplyDeleteदेह से परे सूक्ष्म इन्द्रियां, मन बलवान है इनसे
ReplyDeleteमन से भी सूक्ष्म है बुद्धि, आत्मा श्रेष्ठ है सबसे
grahy panktiyaan
इसी आत्मा को पाकर तू, मन, बुद्धि वश में कर ले
ReplyDeleteमन के पीछे चलें इन्द्रियां, तू पराजित काम कर ले
अद्भुत रचना ..!!
ह्रदय से आभार इसके लिए ..!!
बहुत बढिया .. आभार !!
ReplyDeleteअद्भुत .....बहुत सुन्दर भावानुवाद......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुवाद...धन्यवाद और बधाई
ReplyDeletebhagwat geeta ka bahut sunder anuwaad.bahut saarthak lekh.badhaai sweekaren.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.