तुम आते नित रसधार लिये
फिर तृषित रहा क्यों उर मेरा
क्यों हाथ बढ़ा छू ना सकूं
लहराता रेशम पट तेरा !
है गहन अंध घनघोर घटा
पथ बूझ नहीं पाते नैना
तुम स्नेह दीप जला रखना
यूँ बीतेगी सारी रैना !
तुम प्रियतम ! हो श्रेष्ट तुम्हीं
तुमसे ही जीवन जीवन है
जो तोड़ नहीं पाता मन वह
स्वयं डाला मैंने बंधन है !
कुछ ऐसी मेरी छटपटाहट भी है .............. बहुत सुन्दर ... बहुत सुन्दर ..बधाई
ReplyDeleteतुम आते नित रसधार लिये
ReplyDeleteफिर तृषित रहा क्यों उर मेरा
क्यों हाथ बढ़ा छू ना सकूं
लहराता रेशम पट तेरा !
bahut sundar...
सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव से सजी रचना
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