श्रद्धा सुमन
Wednesday, October 20, 2010
वाणी नित गुणगान करे
मन करे तुम्हारा सुमिरन
तुम प्रेरणा बनो हृदय में
तुम हित कर्म करूं भगवन !
तुम खेला करते खेल नए
यह जगत तुम्हारा क्रीडांगन
आनंद की इन बौछारों में
गूंजे मेरी भी रुनझुन !
1 comment:
अनुपमा पाठक
20 October, 2010
sundar!
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sundar!
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