न तुमसा कोई न बढ़कर
तुम सहज प्रेम दे बुला रहे,
जग एक छलावा, फीका है
फिर भी आकर्षण लुभा रहे !
मन के ऊपर जो परतें हैं
हैं तुच्छ, घृणित, हैं दुखदायक
तुम ढके हुए भीतर कोमल
निर्दोष प्रेम ! हो सुखदायक !
जग में पाना निज को खोना
जग खोकर ही निजता पाते
जिसको जीवन हम समझ रहे
मरकर ही उस द्वारे जाते !
अनिता निहालानी
१७ नवम्बर २०१०
जिसको जीवन हम समझ रहे
ReplyDeleteमरकर ही उस द्वारे जाते !
सत्य है!