हृदय में झंझावात उठा
सूना अंतर, मन है प्यासा
तुम झलक दिखाकर छिप जाते
दे जाते बस रोज दिलासा !
बरसों बीते ढूंढा तुमको
अब तक तुम दूर दूर बसते
देते आश्वासन मुस्का के
अकुलाहट सारी हर लेते !
जब तक हो पूर्ण पूजा मेरी
अंतर में अटल विश्वास रहे
भीतर प्रकाश छाए तब तक
हो यहीं, यही आभास रहे !
बिल्कुल सही कहा ........ भीतर प्रकाश हो भरा , तो ऐसा ही आभास होता है ...... यूँ ही लिखते रहिये . मुझे आपको पढ़ना अच्छा लगता है .
ReplyDeleteअमृता जी, धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDelete