Monday, October 11, 2010

भावांजलि

हे प्रभु ! अपनी शरण में ले लो
इस घट को अब खाली कर दो
भाव पुष्प मुरझा ना जाये
अपने चरणों में ही धर दो !

छोड़ दिया अभिमान प्रीत का
सुंदर, सरस भक्ति गीत का
सहज, सरल शब्दों में अर्पित
अपना लो यह हृदय मीत का !

नहीं चाहियें मोती माणिक
धन-दौलत, अनमोल खजाने
जो तुमसे दूर ले जाएँ
नहीं चाहियें वेश सुहाने I

2 comments:

  1. नहीं चाहियें मोती माणिक
    धन-दौलत, अनमोल खजाने
    जो तुमसे दूर ले जाएँ
    नहीं चाहियें वेश सुहाने I

    behatrin.

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