श्रद्धा सुमन
Tuesday, October 19, 2010
हे दयानिधान ! हे कृपालु !
दिए तन, मन, प्राण
सँग धरा आकाश !
बिन मांगे ही दिया प्रकाश
हे पूर्ण सत्य !, हे दयालु !
कामना से मुक्त कर
उर को संवारा,
बन कठोर दिया तोड़
तृष्णा का पाश !
2 comments:
Priyahindivibe | Priyanka Pal
26 October, 2025
बहुत सुंदर हृदय को प्रेम से भर देती रचना ।
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Anita
30 October, 2025
स्वागत व आभार!
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बहुत सुंदर हृदय को प्रेम से भर देती रचना ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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