Wednesday, October 27, 2010

हृदय में झंझावात उठा
सूना अंतर, मन है प्यासा
तुम झलक दिखाकर छिप जाते
दे जाते बस रोज दिलासा !


बरसों बीते ढूंढा तुमको
अब तक तुम दूर दूर बसते
देते आश्वासन मुस्का के
अकुलाहट सारी हर लेते !


जब तक हो पूर्ण पूजा मेरी
अंतर में अटल विश्वास रहे
भीतर प्रकाश छाए तब तक
हो यहीं, यही आभास रहे !

2 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा ........ भीतर प्रकाश हो भरा , तो ऐसा ही आभास होता है ...... यूँ ही लिखते रहिये . मुझे आपको पढ़ना अच्छा लगता है .

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  2. अमृता जी, धन्यवाद एवं आभार !

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