Monday, October 25, 2010

गूंज रही अनादि काल से
नील व्योम में वंशी की धुन
छल-छल सरिता भी उफन रही
पुष्पों पर भ्रमरों की गुनगुन !

श्रावण की घोर घटाओं में
तुम चंद्र ! नजर नहीं आते
छिप-छिप तड़ित सम दर्श दिए
तक, सूने उर को तरसाते !

1 comment:

  1. छिप-छिप तड़ित सम दर्श दिए
    तक, सूने उर को तरसाते !
    बहुत सुन्दर लगता है अभी सावन का रंग गया नही। शुभकामनायें।

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