Tuesday, October 19, 2010

हे दयानिधान ! हे कृपालु !
दिए तन, मन, प्राण
सँग धरा आकाश !
बिन मांगे ही दिया प्रकाश
हे पूर्ण सत्य !, हे दयालु !
कामना से मुक्त कर
उर को संवारा,
बन कठोर दिया तोड़
तृष्णा का पाश !

2 comments:

  1. बहुत सुंदर हृदय को प्रेम से भर देती रचना ।

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    1. स्वागत व आभार!

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