Tuesday, April 26, 2016

सिद्धार्थ का कैकेयी को समझाना तथा राज का श्रीराम के साथ जाने की इच्छा प्रकट करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

षट्त्रिंशः सर्गः
राजा दशरथ का श्रीराम के साथ सेना और खजाना भेजने का आदेश, कैकेयी द्वारा इसका विरोध, सिद्धार्थ का कैकेयी को समझाना तथा राज का श्रीराम के साथ जाने की इच्छा प्रकट करना 

राजा का यह क्रोध देखकर, कैकेयी भी हुई कुपित
राजा सगर की याद दिलायी, उसने हो दुगनी क्रोधित

असमंज पुत्र था उनका, देश निकाला दिया जिसे
इसी तरह चाहिए इनको, जाएँ निकल राम यहाँ से 

‘है धिक्कार’ कहा राजा ने, सब लोग गड़ गये लाज से 
किन्तु समझ न पायी रानी, औचित्य को धिक्कार के

उस समय वहाँ बैठे थे, वयोवृद्ध प्रधान मंत्री
सिद्धार्थ नाम था उनका, धर्म युक्त यह बात कही

असमंज दुष्ट अति था, बच्चों को सरयू में फेंकता
ऐसे ही कार्यों से वह, अपना मनोरंजन था करता

नगरनिवासी बोले नृप से, उसकी यह करतूत देखकर
या तो असमंज को रखें, या हमसब ही रहें यहाँ पर

प्रजाजनों की बात सुनी जब, त्याग दिया पुत्र राजा ने
पत्नी सहित उसे बिठाकर, बाहर निकाला सामग्री दे

फाल और पिटारी लेकर, कन्दराओं में वह विचरा
दुर्गम गुफा बनी निवास, पापाचारी था, त्यागा

किन्तु राम का क्या दोष है, रोका जिन्हें राज्य पाने से
शुक्ल द्वितीया के चन्द्र समान, कोई अवगुण नहीं है इनमें

यदि दोष कोई हो उनमें, उसे कहो ठीक तुम आज
सन्मार्ग में जो स्थित है, धर्म विरुद्ध है उसका त्याग

कोई लाभ न होगा तुमको, राज्याभिषेक रोकने में
इंद्र तेज भी दग्ध हो सके, रक्षा करो लोकनिंदा से  

सिद्धार्थ की बातें सुनकर, थके हुए राजा भी बोले
हित अहित का ज्ञान न रहा, तुझको मेरे या अपने  

दुःखद मार्ग का आश्रय लेकर, कर रही ऐसी कुचेष्टा
साधू पुरुषों के विरुद्ध है, यह तेरी सारी चेष्टा

धन, राज्य व सुख त्याग कर, मैं भी चला राम के पीछे
राज्य अकेली तू भोगना, ये लोग भी साथ चलेंगे


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छत्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ

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