श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
जीवन्मुक्त के लक्षण (शेषभाग)
ममता नहीं देह आदि में, सहज भाव से कर्म वह करता
उदासीनवत् जग में विचरे, जीवन्मुक्त वही कहलाता
ब्रह्म आत्मा के ऐक्य को, श्रुति प्रमाण से जिसने जाना
जग बंधन से मुक्त हुआ वह, जीवन मुक्त उसी को माना
देह ‘मैं’ ‘यह’ जगत शेष है, ऐसा भाव न जिसमें रहता
आत्म भाव में हुआ मग्न जो, जीवन मुक्त कहा जाता
जिसकी प्रज्ञा प्रखर हुई है, ब्रह्म जगत में भेद न जाने
स्वयं भी ब्रह्म से एक हुआ जो, जीवन मुक्त उसी को माने
साधु पुरुष से पा सम्मान, दुष्टों से पाकर अपमान
जिसका चित्त एक सा रहता, जीवन मुक्त उसी को जान
सागर में कोई क्षोभ न होता, जब नदियाँ उसमें आ मिलतीं
सारे विषय समाते उसमें, चित्त में समता फिर भी रहती
ब्रह्म तत्व को जिसने जाना, जग की नहीं आस्था उसको
यदि आस्था शेष किसी में, ज्ञान नहीं सधा उसको
पूर्व वासना के कारण भी, यदि माने आस्था जग में
संभव नहीं कभी होता यह, क्षीण वासना, ज्ञान करे
काम वृत्ति कुंठित हो जाती, अतिकामी की माँ के सम्मुख
ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त हुआ जो, होगा जग वासना से विमुख
जीवन का सच।
ReplyDeleteyathart se parichay kara diya aapne .sunder bhav may prastuti
ReplyDeleteमनोजजी, अमरेन्द्र जी आभार !
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