श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
जीवन्मुक्त के लक्षण
ब्रह्माकार वृत्ति है जिसकी, बुद्धि विषय से अनासक्त है
जो मिल जाये सहज ग्रहण कर, बालवत् जो रहे मुक्त है
जग एक स्वप्न समान हुआ, जिस ज्ञानी को, वह धन्य है
शेष नहीं कामना जिसकी, पुण्य अनंत जगे हैं उसके
परब्रह्म में चित्त लीन कर, आनंद मग्न सदा जो रहता
कर्म सहज ही होते उससे, कर्ता भाव नहीं है रहता
ब्रह्म आत्मा के ऐक्य को, जिसने भीतर प्राप्त किया है
प्रज्ञावान उस ज्ञानी को ही, स्थित प्रज्ञ कहा गया है
यथावत् व्यवहार भी करता, किन्तु स्वप्नवत् जगत को माने
जो कामना रहित हुआ है, जीवन मुक्त उसी को माने
जगत वासना शांत हुई है, कलावान पर कलाहीन सा
निर्विकार स्वरूप में रहता, चित्त युक्त है जड़ अलिप्त सा
जब तक है प्रारब्ध शेष, देह छाया सा सँग ही रहता
मैं मेरे का भाव न बचता, ज्ञानी जीवन मुक्त हो रहता
न अतीत का शोक है उसको, न भविष्य की चिंता रखता
वर्तमान में जो मिलते, सुख-दुःख को सम भाव से सहता
आत्मस्वरूप से युक्त सदा जो, ऐसे जग में समदर्शी है
इष्ट अनिष्ट में भी सम रहता, ऐसा वह अद्भुत ज्ञानी है
ब्रह्मानंद रसास्वाद में, चित्त शांत हुआ है जिसका
बाह्य आंतरिक ज्ञान न रहता, चित्त समाधिस्थ हुआ है उसका
very nice.
ReplyDeleteइस तरह की आश्यात्मिक संगति (प्रस्तुति) से मन को बल मिलता है।
ReplyDeleteनिशा जी, मनोज जी, व अनुराग जी आभार व स्वागत!
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