Wednesday, January 4, 2012

आत्म चिंतन का विधान


श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि


आत्म चिंतन का विधान

जो विकल्प उठा करते हैं, चित्त ही केवल उनका मूल
मन स्थिर हो यदि स्वयं में, मिट जाता विकल्प समूल

नित्यबोध स्वरूप तत्व है, आनंद रूप, अनुपमेय, मुक्त
है अनंत, निर्विकल्प भी, कालातीत, अक्रिय, अयुक्त

अन्तःकरण में अनुभव करते, पूर्णब्रह्म का योगीजन
कारण कार्य रहित, समरस जो, परे प्रमाण से भावातीत

अजर, अमर, आभास शून्य, वस्तुरूप जल राशि ज्यों निश्चल
नामरूप से रहित, अविकारी, नित्य, शांत, अद्वितीय ब्रह्म

स्वयं में चित्त समाहित करके, आत्मा का अनुभव करते
भव बंधन को तज यत्न से, मानव जन्म सफल करते

उपाधि रहित, अद्वितीय तत्व का, अन्तःकरण में जो स्थित  
चिंतन हो यदि आत्म तत्व का, भव बंधन से है वही मुक्त 



4 comments:

  1. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।

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  2. कविता में प्रस्तुत विचार अनुकरणीय है !

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  3. बहुत बढिया प्रस्तुति।

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