श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
दृश्य की उपेक्षा
तन केवल छाया ही है, आभास रूप से जो दिखता है
इसका अंत मृत्यु है केवल, आत्मा नहीं मरा करता है
नित्य और निर्मल स्वरूप को, जड़ शरीर से श्रेष्ठ ही मानो
पुनः न स्वयं को देह मानना, अपने को आत्मा जानो
विचारवान श्रेष्ठ मनुष्य, माया को ज्ञान से हरते
नित्य, विशुद्ध आनंद बोध में, नित्यप्रति निवास फिर करते
गले में माला रहे या गिरे, गौ इसका ध्यान नहीं रखती
प्रारब्ध से मिला है यह तन, वृत्ति योगी की इससे नहीं बंधती
सुख स्वरूप जब स्वयं को जाना, देह से किसकी चाह रखना
नित्य स्वरूप आत्मा जानी, पुनः न भव बंधन से बंधना
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,......
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
आभार आपका अनीता जी |
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएं |
धीरेन्द जी, शिल्पा जी, आपका स्वागत व आभार!
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