पिछले वर्ष अक्तूबर की २३ तारीख को मैंने यह श्रृखला आरम्भ की थी. आज १४ मार्च २०१२ को इसका अंतिम भाग प्रस्तुत कर रही हूँ. आप सभी का सहयोग मिला और यह कार्य सम्पन्न हुआ. आगे भी इसी तरह का कार्य करने की इच्छा है आपमें से कोई सुझाव दें तो स्वागत है.
श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि
उपसंहार
शिष्य विदा, अनुबंध चतुष्टय, ग्रंथ प्रशंसा
बंधन, मुक्ति हैं माया में, नहीं आत्मा में हो सकते
सर्प का होना या न होना, भ्रम है क्रिया हीन रज्जु में
बंधन है अज्ञान के कारण, दूर हुआ तो मुक्ति घटती
ब्रह्म को कैसे ढके आवरण, द्वैत नहीं मानती श्रुति
सूर्य को ढका हम कहते, चाहे मेघ ढके आँखों को
ब्रह्म को न ढक सकता कोई, बुद्धि के ही गुण हैं दोनों
ब्रह्म सदा एक अविनाशी, होना, न होना न उसमें
बुद्धि में ही भाव, अभाव, बंध, मोक्ष कल्पित माया में
निर्मल, शांत, निरंजन, है वह, नभ जैसा विस्तीर्ण विशाल
निरवयव, निष्क्रिय ब्रह्म में, कैसे हो कल्पना जाल
नहीं नाश होता है उसका, ना मृत्यु ही संभव है
न कोई साधक न मुमुक्षु, सदा आत्मा मुक्त ही है
दोष रहित, हे तृष्णा शून्य, तुझे पुत्र समान ही जान
गुह्य ज्ञान कहा है मैंने, सकल शास्त्र का अनुपम सार
शिष्य की विदा
किया शिष्य ने नमन गुरु को, मुक्त हुआ किया प्रस्थान
आनंद मग्न हुए गुरुवर भी, धरती पर फिर करें विहान
आत्मज्ञान का यह निरूपण, कहा गया साधक के हित में
बोध करें सुगमता से वह, पढ़ संवाद गुरु-शिष्य में
शास्त्र श्रवण से हुए शुद्ध जो, शांत चित्त, मुमुक्षु जन
हितकारी उपदेश को पढ़कर, करें ज्ञान का समुचित आदर
जग के पथ में दाह बहुत है, हैं दुःख रूपी सूर्य की किरणें
जल की इच्छा से भ्रमते हैं, मरुथल में जन थके-थके से
अति निकट ही ब्रह्म सिंधु है, जिसमें भरा है अमृत सा जल
शंकराचार्य की मोक्ष प्रदायिनी, वाणी देती है अद्भुत फल
इति
बहुत सुंदर और श्रेष्ठ प्रयत्न .
ReplyDeleteआपकी ही पंक्ति आपकी इस सफलता पर आपको समर्पित करता हूं ..
ReplyDeleteअति निकट ही ब्रह्म सिंधु है, जिसमें भरा है अमृत सा जल
शंकराचार्य की मोक्ष प्रदायिनी, वाणी देती है अद्भुत फल
सूर्य को ढका हम कहते, चाहे मेघ ढके आँखों को
ReplyDeleteब्रह्म को न ढक सकता कोई, बुद्धि के ही गुण हैं दोनों ...
सच कहा है ... आँखें बंद करके कहना ही रौशनी नहीं है ... बहुत सुन्दर अर्थ पूर्ण ...
aabhaar :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रयोग है। आपने सुझाव मांगा है - हर पोस्ट के आरम्भ में यदि ग्रंथ के विषय, कुल श्लोक, सम्भावित रचनाकाल एवम अन्य सम्बन्धित जानकारियाँ भी जोड़ दें तो हर पोस्ट न केवल संग्रहणीय हो जाये बल्कि लोग उनका उपयोग सन्दर्भ के रूप में भी कर सकेंगे। आभार!
ReplyDeleteआपका सुझाव बहुत अच्छा है, मैं इस पर अवश्य अमल करने का प्रयास करूँगी, आभार !
Deleteबहुत सुंदर प्रयास है आपके प्रयास के लिए कोटि-कोटि नमन और शिष्य की तरफ से एक ब पंक्ति
ReplyDeleteजिसकी माया से अखिलेश जगत वसवर्तित है़ ब्रह्मादि सुरा।
यह सकल सृष्टि मानो ब्रह्म रचित को गोचर ऊर्णातंतु पुरा। ।।
स्वागत व आभार !
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